पोंगल का त्योहार क्यों और कब मनाया जाता है?

Anamika Singh
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क्या आप जानते है दक्षिण भारत का मुख्य त्यौहार पोंगल क्यों और कब मनाया जाता है? शायद हाँ भी और नहीं भी क्योकि उत्तर भारत में इसे और किसी नाम से मनाया जाता है और हम सभी जानते हैं भारत त्योहारों का देश है. यहां हर राज्यों से सभी त्योहार बहुत धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं प्रत्येक वर्ष जब सूर्य उत्तरायण होता है तो उत्तर भारत में मकर संक्रांति और लोहड़ी मनायी जाती है। यह सर्दियों के मौसम में पड़ने वाला प्रमुख त्योहार है। इस दिन लोग पवित्र नदी में स्नान करते हैं और गरीबों एवं दीन दुखियों को दान देते हैं.

मकर संक्रांति को उत्तर क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में मनायी जाती है और इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. दक्षिण के राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है. हर साल 14 से 20 जनवरी के बीच पोंगल का त्योहार मनाया जाता है. कहा जाता है कि जब नई फसल तैयार हो जाती है तो किसान अपनी खुशी को जाहिर करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाते हैं.

इस त्योहार में मिठाई बनाकर पोंगल देवता को अर्पित की जाती हैं, इसके बाद गाय को अर्पित कर परिवार में बांटी जाती हैं. इस दिन लोग अपने घरों के बाहर कोलम भी बनाते हैं. परिवार दोस्तों के साथ पूजा कर एक दूसरे को उपहार देते हैं.

आइये जानते हैं पोंगल का महत्व और इतिहास के बारे में,

कब और कैसे मनाया जाता है पोंगल त्यौहार?

पोंगल का त्योहार मुख्य रूप से सूर्य की उपासना के लिए जाना जाता है और यह चार दिनों तक मनाये जाने वाला त्यौहार है. पोंगल के पहले दिन लोग सुबह उठकर स्नान करके नए ट्रेडिशनल कपड़े पहनते हैं और नए बर्तन में दूध, चावल, काजू, गुड़ आदि चीजों की मदद से पोंगल नाम का भोजन बनाया जाता है. सूर्य अर्पित किए जाने वाले प्रसाद को पगल कहते हैं. पूजा के बाद लोग एक दूसरे को पोंगल की बधाई देते हैं.

चूंकि खेती-बाड़ी करने वाले किसान के लिए गाय-बैलों का भी बड़ा महत्व है, इसलिए पोंगल के त्योहार पर इनकी भी पूजा की जाती है और भवन से प्राथन किया जाता है की आने वाली फसल अच्छी हो. किसान इस दिन अपनी बैलों को स्नान कराकर उन्हें सजाते हैं. इस दिन घर में मौजूद खराब वस्तुओं और चीजों को भी जलाया जाता है और नई वस्तुओं को घर लाया जाता है. कई लोग पोंगल के पर्व से पहले अपने घरों को खासतौर पर सजाते हैं.

कितने दिन तक मनाया जाता है पोंगल का त्योहार

Pongal South Indian Festival

इस पर्व के महत्वपूर्ण है इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह चार दिनों तक चलता है. हर दिन के पोंगल का अलग अलग नाम होता है. यह जनवरी से शुरू होता है.

पहली पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज इन्द्र का समर्पित हैं. इसे भोगी पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहने वाले देवता माने जाते हैं और यह स्वर्ग में रहते है इसके पास सुख-सुविधाओं होती है. इस दिन संध्या समय में लोग अपने अपने घर से पुराने वस्त्र कूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं. यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है. इस अग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सिंग का बना एक प्रकार का ढ़ोल होता है.

दूसरी पोंगल को सूर्य पोंगल कहते हैं और त्यौहार का दूसरा दिन होता हैं. यह भगवान सूर्य के लिए होता है. इसदिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नये नए धान से तैयार चावल, मूंग दाल और गुड से बनती है. पोंगल तैयार होनेके बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल व गन्ना अर्पण किया जाता है और फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है.

तीसरे पोंगल को मट्टू पोगल कहा जाता है. तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल (नंदी बैल) है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में किसानो की सहायता कर रहा है. इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं उनके सिंगों में तेल लगाते हैं एवं अन्य प्रकार से बैलों को सजाते है. बालों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है. बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है. कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानते हैं, जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं.

चार दिनों के इस त्यौहार के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है जिसे तिरूवल्लूर के नाम से भी लोग पुकारते हैं. इस दिन घर को सजाया जाता है. आम के पलल्व और नारियल के पत्ते से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है. महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वारा पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं. इसदिन पोंगल बहुत ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है लोग नये वस्त्र पहनते है और दूसरे के यहां पोंगल और मिठाई उपहार के तौर पर भेजते हैं. इस पोंगल के दिन ही बैलों की लड़ाई होती है जो काफी प्रसिद्ध है. रात के समय लोगसामुदिक भोजन का आयोजन करते हैं और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामना देते हैं.

पोंगल त्यौहार को चार दिनों तरह अलग-अलग देवी-देवताओ को समर्पित करके मनाया जाता है और दक्षिण भारत के मुख्य त्योहारों में से एक है. बहुत से लेखक पोंगल पर निबंध भी बना चुके है जो की अक्सर उत्तर और दक्षिण भारत में पूछा जाता है.

पोंगल त्यौहार से जुड़े मान्यताएं

एक मानयता एक अनुसार गाय के दूध के उफान को शुद्ध माना जाता है क्योकि लोग मानते है दूध का उफान सबसे शुद्ध होता है और उसी तरह पोंगल त्यौहार हमारे मन नए और शुद्ध उफान लता है और हमारी संस्कृति के प्रति हमारे भावनाओं को मजबूत बनाता है. इस वजह से पोंगल त्यौहार के समय पूरे दक्षिण भारत में हर्सौलास का मौहोल देखने को मिलता है.

पोंगल के पकवान सबसे प्रमुख होते है और इस दिन एक स्पेशल खीर बनायीं जाती है और साथ में चावल, दुध और चीनी से बने बहुत से स्वादिस्ट पकवान बनाये जाते है. जो की भगवान् को भोग लगाया जाता है और फिर परिवार और दोस्तों में उपहार के रूम में दिया जाता है.

दोस्तों, आपको यहाँ पर जानकारी मिल गया की पोंगल त्यौहार क्यों मनाया जाता है? और यह त्यौहार कितने दिनों तक मनाया जाता है? यह दक्षिण भारत का एक मुख्य त्यौहार है. इसके बारे में अपने विचार कमेंट में शेयर करे.

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